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‘स्व’ का सत्य निःसंकोच भाव से बताना होगा – सुनील आंबेकर - ବିଶ୍ୱ ସମ୍ବାଦ କେନ୍ଦ୍ର ଓଡିଶା

‘स्व’ का सत्य निःसंकोच भाव से बताना होगा – सुनील आंबेकर

लखनऊ (विसंकें). लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में दिव्य प्रेम सेवा मिशन न्यास द्वारा ‘जाणता राजा’ छत्रपति शिवाजी महाराज के 350वें राज्याभिषेक उत्सव वर्ष में संगोष्ठी आयोजित की गई. संगोष्ठी में छत्रपति शिवाजी के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व का वर्तमान परिस्थिति में युवाओं पर प्रभाव विषय पर चर्चा हुई. संगोष्ठी में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर जी रहे. सुनील आंबेकर जी ने छत्रपति शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व का उद्धरण करते हुए हिन्दवी स्वराज के महत्त्व पर प्रकाश डाला.

उन्होंने कहा कि उस समय छत्रपति शिवाजी महाराज नहीं होते तो क्या होता? और वह हिन्दवी स्वराज की स्थापना का संकल्प न लेते तो क्या होता? इसकी कल्पना करनी चाहिए. उन्होंने कई वर्षों तक भारत को विदेशी आक्रांताओं से सुरक्षित रखा. व्यक्ति की परवरिश का आजीवन प्रभाव रहता है, शिवाजी अपनी माता जीजाबाई से बहुत प्रभावित थे. उन्होंने अपनी माँ की प्रेरणा से राष्ट्र रक्षा का संकल्प लिया और देश का भविष्य बनाना, अपना भविष्य बनाने से कहीं ज्यादा अच्छा माना.

चतुर्दिक अंधकार व्याप्ति के समय में शिवाजी अपने बाल जीवन में ऐसे खेल खेलते थे, जिससे देश में धर्म की स्थापना होती थी. भगवान शिव को साक्षी मानकर अपने रक्त से हिन्दू स्वराज की स्थापना का संकल्प लिया था. शिवाजी का युद्ध कौशल बहुत अच्छा था और वह अपनी छोटी सेना से बड़ी-बड़ी सेनाओं को डराते थे. सुनील आंबेकर ने कहा कि शिवाजी के राज्याभिषेक के साथ ही देश में अपना ‘स्व’ स्थापित होना शुरू हुआ. आज उसी ‘स्व’ की बात स्वाधीनता के 75 वर्ष में भी की जा रही है. स्वाधीनता ‘स्व’ की स्थापना के लिए जरूरी है.

शिवाजी के राज्याभिषेक से पहले की कानूनी सरकारी भाषा में 1668 में 208 पर्सियन शब्द तथा मराठी शब्द नाम मात्र थे, किंतु राज्य स्थापना के बाद पर्सियन के मात्र 51 शब्द रह गए. ‘स्व’ का अर्थ की अपनी भाषाओं में अपना राज्य चलाना होगा. मुगलों को लगान पैसे से ही देना होता था, किंतु शिवाजी ने अनाज से भी कर लेना शुरू किया. उन्होंने हिन्दवी स्वाराज की स्थापना के बाद अपनी सेना के पद तथा नाम बदले.

भारत की स्वाधीनता के 75वें वर्ष में नौसेना के प्रतीक चिन्ह के रूप में शिवाजी का प्रतीक चिन्ह स्थापित किया गया. शिवाजी के राज्य उद्देश्य क्या थे, इनको समझना बहुत जरूरी है? उन्होंने मंदिर, खेती, न्याय का तंत्र खड़ा किया. प्रशासन को भारतीय शैली में स्थापित करने में कोई संकोच नहीं किया.

उन्होंने कहा कि सभी का तुलनात्मक अध्ययन समान करना होगा. हमारा इतिहास 5000 साल पुराना है.  लेकिन हमें पढ़ाया जाता है, 400 साल पुराना मुगलों का इतिहास तो हमें समझना होगा कि हमारा 5000 साल का इतिहास समृद्ध है या आक्रान्ताओं का 400 वर्षों का इतिहास. हमें स्व का सत्य निःसंकोच भाव से बताना होगा. शिक्षा में भी स्व का आग्रह होना चाहिए. नई शिक्षा नीति में भारतीय मानकों को पुनर्स्थापित किया जाएगा. हमे सोचना होगा कि हमें कैसा भारत बनाना है, हमें विदेशियों जैसे होना है या अपनी मूल संस्कृति को पुनर्स्थापित करना है. जब हम अपने स्व को जानेंगे, तभी हम कुछ बदल सकते हैं.

अंतर्मन की प्रेरणा से जो कार्य आरम्भ करते हैं, वह अभाव में भी पूर्ण हो जाता है. जिसका उदाहरण हमारे सामने दिव्य सेवा प्रेम मिशन के संस्थापक आशीष जी हैं. जिन्होंने समाज के सबसे कठिन कार्य को चुनकर समाज को एक नयी राह दिखाई है.

कार्यक्रम की अध्यक्षता गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति राजेश सिंह व मुख्य अतिथि दयाशंकर सिंह परिवहन मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार स्वतंत्र प्रभार ने की. विशिष्ट अतिथि बाबा भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजय सिंह जी रहे. कार्यक्रम में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. राज शरण शाही, राष्ट्रधर्म के निदेशक मनोजकान्त व अन्य उपस्थित रहे.

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