15 अगस्त को जिस समय समस्त भारत में स्वतंत्रता की वर्षगांठ की खुशियां मनाई जा रही थीं. उस समय वीर देशभक्त बर्बर पुर्तगालियों की बन्दूकों के सामने सीना खोलकर बढ़ रहे थे. उन पर निरन्तर भीषण रूप में गालियां बरसाई जा रही थीं. एक-दो नहीं, बल्कि 51 वीरों ने उस दिन मां की वेदी पर स्व-जीवन की आहुति चढ़ाई. घायलों की संख्या तो 300 के लगभग पहुंच गई थी. एक छोटे से क्षेत्र में एक दिन में निहत्थे लोगों की इतनी बड़ी संख्या में हत्या की गई हो, इसका उदाहरण इतिहास में ढूंढने पर शायद ही मिल सके.
पुर्तगालियों भारत छोड़ो
इधर 15 अगस्त को गगन मण्डल में सूर्य का आगमन हुआ, उधर सत्याग्रहियों की टोलियों ने “पुर्तगालियों भारत छोड़ो” के जयघोष के साथ गोवा की सीमा में प्रवेश किया. सीमा पर तैनात पुर्तगाली सैनिकों ने निहत्थे सत्याग्रहियों पर अपनी ब्रोनगनों, स्टेनगनों, रायफलों तथा बन्दूकों के मुंह खोल दिए. एक-के-बाद दूसरा सत्याग्रही बलिदानी होने के लिए बढ़ने लगा. मौत से जूझने की होड़ लग गई. एक दिन में 5000 सत्याग्रही गोवा की सीमा में प्रविष्ट हुए. जिनमें से 51 के लगभग घटनास्थल पर बलिदान हुए तथा तीन सौ से अधिक घायल. इस अहिंसात्मक संग्राम में पुरुषों ने जिस वीरता का परिचय दिया, उससे कहीं अधिक वीरता का प्रदर्शन महिलाओं ने किया. चालीस वर्षीया सुभद्रा बाई ने तो झांसी की रानी की ही स्मृति जाग्रत कर दी. पुरुष सत्याग्रही से झण्डा लेकर स्वयं छाती पर गोली खाकर अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया.
दिल्ली में जनसंघ की ओर से राजेंद्र नगर में एक विशाल सभा में पं. दीनदयाल उपाध्याय ने कहा, “पुर्तगाली शासन बर्बर अत्याचारों से जनता को भयभीत करके भारतीयों को गोवा में आंदोलन करने से रोकना चाहता है, किंतु भारतवासी डरते नहीं हैं. वे पुर्तगाली अत्याचारों के सम्मुख किंचित भी नहीं झुकेंगे. जनसंघ इसके पश्चात बड़ी संख्या में सत्याग्रही भेज कर आंदोलन को प्रबल बनाएगा”.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर, उपाख्य श्रीगुरुजी ने एक वक्तव्य में कहा, “गोवा में पुलिस कार्रवाई करने और गोवा को मुक्त कराने का इससे ज्यादा अच्छा अवसर कोई न आएगा. इससे हमारी अन्तरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी. आसपास के जो राष्ट्र सदा हमें धमकाते रहते हैं, उन्हें भी पाठ मिल जाएगा. भारत सरकार ने गोवा मुक्ति आन्दोलन का साथ न देने की घोषणा करके मुक्ति आन्दोलन की पीठ में छुरा मारा है. भारत सरकार को चाहिए कि भारतीय नागरिकों पर हुए इस अमानुषिक गोलीबारी का प्रत्युत्तर दे. मातृभूमि का जो भाग अभी तक विदेशियों की दासता में सड़ रहा है, उसे अविलम्ब मुक्त करने के उपाय करे”.
19 दिसंबर, 1961 को भारतीय सेना ने गोवा, दमन और दीव में तिरंगा फहराया दिया. इसे ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया. जो 36 घंटों तक चला और विजयी हुआ. पुर्तगाल के गवर्नर जनरल वसालो इ सिल्वा ने भारतीय सेना प्रमुख पीएन थापर के सामने सरेंडर कर दिया था. इस तरह भारतीय सेना के बलिदान, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनंसघ की युक्ति और योगदान से गोवा भारतीय गणराज्य का हिस्सा बना. 30 मई, 1987 को गोवा को राज्य का दर्जा दिया गया. जबकि दमन और दीव केन्द्र शासित प्रदेश बने रहे. गोवा मुक्ति दिवस 19 दिसंबर को मनाया जाता है.