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आदि-अनादि काल से भगवा ध्वज की छाया में ही राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हो पाई है – मुकुल कानितकर - ବିଶ୍ୱ ସମ୍ବାଦ କେନ୍ଦ୍ର ଓଡିଶା

आदि-अनादि काल से भगवा ध्वज की छाया में ही राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हो पाई है – मुकुल कानितकर

काशी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी मध्य भाग द्वारा गुरुवार को सरोजा पैलेस में आयोजित रक्षाबंधन उत्सव में अखिल भारतीय प्रचार टोली के सदस्य मुकुल कानितकर जी ने कहा कि आज हिन्दू राष्ट्र, हिन्दुत्व की रक्षा की आवश्यकता है. भगवा ध्वज अग्नि की लौ के आकार का है. आदि- अनादि काल से इस भगवा ध्वज की छाया में ही राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हो पाई है. राष्ट्र रक्षा के लिए संकल्प लेना, यह सतत चलने वाली परंपरा है.

उन्होंने कहा कि संघ समाज के सभी वर्गों से जाति-पाती, ऊँच-नीच के भेद को समाप्त कर समग्र अखंड राष्ट्र की कल्पना के साथ भारत माता के लिए संकल्पित होकर रक्षा बंधन का पर्व मना रहा है. यह पर्व केवल बहनों द्वारा भाई की कलाई पर राखी बांधना और उनकी रक्षा का संकल्प लेना मात्र नहीं है. उन्होंने वीरांगना कर्णावती का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस प्रकार से कर्णावती ने विदेशी आक्रांताओं को सबक सिखाया, उससे यह स्पष्ट है कि यदि समाज धर्म के आधार पर चलने लगा तो किसी को किसी की रक्षा की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. उन्होंने नवयोगिनी तंत्र की चर्चा की, कहा कि नवयोगिनी तंत्र में उस योग के बारे में बताया गया है कि किस प्रकार से नारी अपनी तथा अपने सतीत्व की रक्षा कर सकती है.

उन्होंने कहा कि तथाकथित विद्वान तर्क देते हैं कि रावण को श्राप था कि यदि वह किसी सती स्त्री को छूएगा तो उसकी तत्काल मृत्यु हो जाएगी. जबकि सत्यता इसके विपरीत है. जब प्रभु श्रीराम का वन गमन हुआ तो वह अत्रि ऋषि के आश्रम में माता अनुसूइया से मिले. माता अनुसूइया ने इस तंत्र को सिद्ध किया हुआ था, पूर्व समय में माता द्वारा अपनी पुत्री को इस तंत्र की शिक्षा दी जाती थी, उपरोक्त तंत्र की शिक्षा माता अनुसूया ने सीता जी को दी. जिसके कारण से लंका में रहते हुए माता सीता अपने सतीत्व की रक्षा कर सकी.

मुकुल जी ने आह्वान किया कि वर्तमान में इंटरनेट, सोशल मीडिया के माध्यम से विधर्मी ताकत भारत में द्वेष फैलाने का कार्य कर रही है, परंतु हम सबको एक योद्धा के रूप में कार्य करना होगा और इस इंटरनेट, सोशल मीडिया को हथियार बनाकर वास्तविक तथ्यों को समाज के मध्य में रखना होगा.

उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति को क्षति पहुँचाने हेतु जो भी, जिस विधि से आता है, हम उसी विधि से उसे जवाब देते हैं. हमारे पूर्वज, महापुरुष, साधू-संतों ने अपनी कुशलताओं का उपयोग कर विदेशी आक्रांताओं से हमारे राष्ट्र और संस्कृति का रक्षण किया है. अंग्रेजों ने रेडियो के माध्यम से भारत की पीढ़ी को स्वतंत्रता से भटकाने का षडयंत्र रचा. परंतु सुभाष चंद्र बोस द्वारा रेडियो का प्रयोग कर राष्ट्र की आजादी का बिगुल फूंक दिया, उन्होंने रेडियो के माध्यम से जब उद्बोधन किया – “मैं सुभाष चंद्र बोस बोल रहा हूं” तो भारत की तरुणाई राष्ट्र के लिए उनके साथ चल पड़ी. जितने भी विदेशी आक्रांता भारत भूमि पर इसे लूटने अथवा राज्य करने की नीयत से आए, चाहे शक हों या अन्य, सभी इस भारत के एक अंग बनकर रह गए. वहीं ईरान 17 वर्षों में तथा तुर्की 21 वर्षों में इस्लामिक राष्ट्र बन गया. अकबर जैसे कपटी राजा के भारत में शासन के समय में हमारे संतों ने राष्ट्रवाद का आह्वान किया. काशी के गंगाघाट पर तुलसीदास जी ने रामचरितमानस लिखकर शासन को चुनौती दी. जिस समय मुग़ल सल्तनत अपना प्रसार कर रही थी, हमारी आध्यात्मिक परंपरा, संत परंपरा विधर्मियों के विरुद्ध डटकर खड़ी थी. जब जिस प्रकार के युद्ध की आवश्यकता पड़ी है, चाहे वह तलवार के माध्यम से हो तो छत्रसाल, शिवाजी, राणा प्रताप आदि ने मोर्चा लिया. जब आध्यात्मिक विषय आया तो संत गुरु रविदास, तुलसीदास आदि ने अध्यात्म का मोर्चा संभाला.

उन्होंने कहा कि अंग्रेज वैचारिक विकलांग बनाने की दृष्टि से भारत में उपन्यास लेकर आए, जिससे भारत की तरुणाई को प्रभावित किया जा सके तथा स्वतंत्रता संग्राम को रोका जा सके. परंतु बंकिम चंद्र चटर्जी ने उपन्यास को ही अपना हथियार बनाकर अपने उपन्यास के माध्यम से वंदेमातरम की अलख घर-घर में जगा दी. जो उपन्यास तरुणाई को प्रभावित करने के लिए आए थे, उसी का प्रयोग कर अंग्रेजों को भयभीत कर भगा दिया गया और वह पश्चिम बंगाल के स्थान पर नई दिल्ली को अपनी राजधानी बनाने के लिए मजबूर हो गए.

संत कबीर जन्म स्थान मंदिर के महंत भारत भूषण दास जी ने कहा कि तेरे मेरे भाव से ऊपर उठकर भारत की संस्कृति एवं राष्ट्र के उत्थान में हम अपने जीवन को लगाएं, इसी से राष्ट्र का और हम सबका कल्याण होगा. जितना भी जीवन है, अपने राष्ट्र के लिए समर्पित कीजिए. यह रक्षा सूत्र राष्ट्र रक्षा हेतु संकल्प है. मंच पर काशी मध्य भाग के संघचालक डॉ. हेमंत जी उपस्थित रहे.

कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों ने डॉ. हेडगेवार जी एवं श्रीगुरु जी के चित्र पर पुष्पार्चन किया. ध्वज को रक्षा सूत्र बांधा. कार्यक्रम में नाट्य मंचन के माध्यम से वीरांगना कर्णावती ने अकबर के दुश्चरित्र का शिकार होने से स्वयं को कैसे बचाया और नारी के प्रति अकबर की मानसिकता को उजागर किया.

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