रायपुर, छत्तीसगढ़.
नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बलों को मिली सफलता अभूतपूर्व है. हाल ही में सुरक्षा बलों ने अबूझमाड़ के जंगल में माओवादियों के साथ मुठभेड़ में 31 नक्सलियों को मार गिराया है.
मारे गए माओवादियों में 18 पुरुष और 13 महिला नक्सली शामिल हैं. सुरक्षा बलों ने माओवादियों की कंपनी नंबर 6 का लगभग-लगभग खात्मा ही कर दिया है, कंपनी में कुल 50 माओवादी थे, जिनमें से 31 मारे गए हैं, और 10 से अधिक मुठभेड़ में घायल हुए हैं.
पहली बार हुआ है कि माओवादियों की एक ही कंपनी के अधिकांश माओवादी किसी एक ही मुठभेड़ में मारे गए हैं. छत्तीसगढ़ के इतिहास में भी सबसे सफल ऑपरेशन रहा है, जिसमें 31 माओवादी ढेर हुए हैं.
सुरक्षा बलों को मिली सफलता की पूरा कहानी…..
शुक्रवार को हुई मुठभेड़ से चार दिन पहले पुलिस इंटेलिजेंस को अपुष्ट सूचना मिली थी कि उत्तर बस्तर का कमांडर व मिलिट्री दस्ते का प्रभारी माओवादी आतंकी कमाण्डर कमलेश अबूझमाड़ क्षेत्र में मौजूद है.
01 अक्तूबर को इस सूचना की पुष्टि हुई, और इंटेलिजेंस इनपुट आने के बाद तत्काल डीजीपी, एडीजी, आईजी एवं पैरामिलिट्री फोर्स के वरिष्ठ अधिकारियों ने मीटिंग कर योजना बनाना शुरू किया.
ऑपरेशन की योजना के समय सबसे बड़ी चुनौती थी, अबूझमाड़ का गावड़ी पहाड़. दरअसल यह वो क्षेत्र है, जिसमें माओवादी बड़े आराम से अपना ठिकाना बनाकर रहते हैं, साथ ही अपनी बैठकों को अंजाम देते हैं.
सुरक्षा बल कभी भी इस क्षेत्र में ना ही ऑपरेशन के लिए गए थे, ना ही कभी इस स्थान पर कोई सर्च ऑपरेशन चलाया था. ऐसे में अभियान के दौरान सुरक्षा बलों के सामने नई चुनौतियां आ सकती थीं.
घने जंगल एवं पहाड़ों तथा जलप्रपातों के बीच से ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए टीम गठित की गई, जिसके लिए बस्तर संभाग के 5 जिलों के बेस्ट जवानों को चुना गया. नारायणपुर और दंतेवाड़ा जिले की पुलिस को कमान सौंपी गई.
डीआरजी, बस्तर फाइटर्स, दंतेश्वरी फाइटर्स और एसटीएफ के साथ-साथ पैरामिलिट्री फोर्स को भी ऑपरेशन में शामिल किया गया. 1000 जवानों की टीम माओवादियों के सफाए के लिए निकली.
जवानों को गावड़ी पहाड़ पर नक्सलियों का मुकाबला करना था, इसलिए योजना बेहद ही बारीकी से बनाई गई थी, जिसके तहत जवानों ने 15 किलोमीटर की पहाड़ी को चारों ओर से घेरना शुरू किया और माओवादियों के बनाये अस्थाई कैम्प की ओर बढ़ने लगे.
इस बीच जवानों की एक टुकड़ी जैसे ही पहाड़ी पर चढ़ी तो माओवादी आतंकियों ने गोलीबारी शुरू कर दी. माओवादियों को अंदाजा नहीं था कि इस जगह पर भी पुलिस ऑपरेशन कर सकती है, इसीलिए माओवादी निश्चिंत होकर यहां अपनी मीटिंग कर रहे थे, लेकिन फोर्स की रणनीति ऐसी थी कि माओवादी चारों ओर से घिर चुके थे.
सुरक्षा बलों की ओर से जवाबी कार्रवाई से माओवादी बैकफुट पर आ गए थे, जिस कारण दूसरी ओर भागने लगे. लेकिन दूसरी ओर से पहाड़ी को पहले से ही दंतेवाड़ा पुलिस ने घेर रखा था. माओवादी सुरक्षा बलों की रणनीति के सामने बैकफुट पर आ चुके थे.
ग्राउंड ऑपरेशन को सफल बनाने में डीआरजी, बस्तर फाइटर्स और दंतेश्वरी फाइटर्स की महत्वपूर्ण भूमिका रही, जो इस पूरे ऑपरेशन की रणनीति का भी हिस्सा है. दरअसल डीआरजी, बस्तर फाइटर्स और दंतेश्वरी फाइटर्स में बड़ी संख्या में ऐसे जवान और महिला कमांडो शामिल हैं, जो पूर्व में माओवादी संगठन में रह चुके हैं, ऐसे में उन्हें माओवादियों की रणनीतियों की भी जानकारी होती है.
कुछ जवानों को पता था कि गावड़ी पहाड़ कैसा है, वहां कैसे चढ़ा जा सकता है, उसे कैसे घेरा जा सकता है, वहां मौजूद माओवादियों का रिएक्शन कैसा होगा और किसी प्रतिकूल परिस्थिति में जंगल और पहाड़ का उपयोग कैसे किया जा सकता है. इन्हीं रणनीतियों के साथ ग्राउंड ऑपरेशन को अंजाम दिया गया था.
वास्तव में किसी ग्राउंड ऑपरेशन को करने के लिए इंटेलिजेंस इनपुट और इंटेलिजेंस ब्रीफिंग की आवश्यकता पड़ती है, तो उसके लिए क्या रणनीति बनी? इंटेलिजेंस इतना मजबूत कैसे हुआ?
बस्तर में इंटेलिजेंस यूनिट तो हमेशा से मौजूद है, लेकिन यूनिट से मिले इनपुट्स उतने कारगर नहीं रहे. लेकिन बीते कुछ महीनों में पूरी रणनीति को बदलकर इंटेलिजेंस पर जोर दिया गया, जिसके चलते पॉजिटिव रिज़ल्ट सामने आने लगे.
नक्सल प्रभावित जिलों में केवल इंटेलिजेंस को देखने और उसे डिकोड करने के लिए एक डीएसपी रैंक के अधिकारी को पदस्थ किया गया, जिसके चलते इनपुट्स आने में और उसे डिकोड करने में भी तेजी आई. इसके अलावा पुलिस हेडक्वार्टर में एक हाईटेक सर्विलांस टीम को बैठाया गया, जो प्रमुख रूप से नक्सल गतिविधियों पर नजर रख रही थी. इसके बाद जंगल के भीतर के सूचना तंत्र को ना सिर्फ मजबूत किया गया, बल्कि उसे 360° डायनामिक बनाया गया.
पूरी कार्यप्रणाली में एक ऐसा मैकेनिज़्म तैयार हुआ कि जंगल से आने वाले इनपुट्स बेहद ही कम समय में कई स्तरों पर जांचे जाने के बाद भी जल्दी और प्रभावी रूप से अधिकारियों तक पहुंचने लगे. और फिर इन्हीं इंटेलिजेंस इनपुट्स के आधार पर ऑपरेशन की योजना बनाई जा रही है. सेंट्रल इंटेलिजेंस की टीम की भी इसमें प्रमुख भूमिका रही.