लखनऊ. उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने श्री रामचरित मानस के कुछ अंशों को उठाकर विवादित टिप्पणियां करने और प्रतियां जलाने के मामले में समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की याचिका खारिज कर दी. न्यायालय ने कहा कि किसी भी ग्रंथ या अभिलेख में दिए कथन सही परिप्रेक्ष्य में ही पढ़े और रखे जाने चाहिए. कहीं से भी कोई एक अंश बिना सम्पूर्ण तथ्यों के रखना सत्य कथन नहीं कहा जा सकता, कुछ परिस्थितियों में ऐसा कथन असत्य कथन भी हो सकता है.
स्वामी प्रसाद की ओर से दाखिल याचिका में प्रतापगढ़ के कोतवाली सिटी में दर्ज एफआईआर की विवेचना के बाद दाखिल आरोप पत्र और निचली अदालत द्वारा संज्ञान लिए जाने संबंधी आदेश को चुनौती दी गई थी. याचिका 31 अक्तूबर को ही खारिज हो गई थी, हालांकि विस्तृत निर्णय सोमवार को जारी किया गया.
न्यायालय में सपा नेता के अधिवक्ता ने दलील दी थी कि उन्होंने रामचरित मानस की चौपाइयों को सिर्फ उद्धृत किया है. जिन चौपाइयों को उद्धृत किया है, वे मानस में हैं, लिहाजा उन्होंने कोई असत्य बात नहीं कही. इस पर न्यायालय ने उपरोक्त टिप्पणी की. न्यायालय ने यह भी कहा कि उदाहरण के लिए कोई भी विधि अथवा न्यायिक निर्णय भी हमेशा पूरे ही पढ़े जाते हैं.
विधि के प्रावधानों का अथवा न्यायिक निर्णयों का कोई अंश, बिना उसके समस्त संगत प्रावधानों के प्रस्तुत नहीं किया जा सकता. न्यायालय ने कहा कि इसी प्रकार जब रामचरित मानस की कोई चौपाई उद्धृत की जाए तो यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि उसमें कहा गया कथन, किस पात्र ने, किस परिस्थिति में, किससे कहा है.
न्यायालय ने कहा कि याची द्वारा कही गई चौपाई ‘ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़न के अधिकारी’ वास्तव में समुद्र ने श्रीरामचंद्र जी से इस आशय के साथ कही है कि वह स्वयं एक जड़-बुद्धि है और वह इस कारण से की गई भूल की क्षमा मांग रहा है. ऐसी परिस्थिति में स्वयं को जड़-बुद्धि मानने वाले एक पात्र द्वारा कहा गया कथन जब समस्त संगत तथ्यों के संदर्भ के बिना प्रस्तुत किया जाता है तो यह सत्य का सही विरूपण नहीं हो सकता है.
न्यायालय ने कहा कि इसी प्रकार ‘पूजिअ विप्र सील गुन हीना, शूद्र न गुन गन ज्ञान प्रवीना’ चौपाई के विषय में भी विद्वानों के विभिन्न मत हैं, विशेषतः विप्र के अर्थ को लेकर कुछ विद्वानों का मानना है कि विप्र से तात्पर्य ऐसे व्यक्तियों से है, जिन्हें ब्रह्म ज्ञान है और यह किसी जाति विशेष में जन्म लिए व्यक्तियों को इंगित नहीं करता है.
न्यायालय ने कहा कि याची के कृत्यों से श्री रामचरित मानस, जो एक बड़े वर्ग द्वारा पवित्र ग्रंथ माना जाता है, इसे जलाकर नुकसान पहुंचाया गया और अपमान किया गया. इसे एक बड़े वर्ग ने धर्म का अपमान माना. याची के कहे गए कथन प्रथम दृष्टया इस आशय से कहे गए लगते हैं या कथनों से यह संभाव्य प्रतीत होता है कि उससे व्यक्तियों का एक वर्ग दूसरे के विरुद्ध अपराध के लिए उत्प्रेरित हो जाए.
इनपुट – मीडिया रिपोर्ट्स