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आपातकाल के समय जो जेल में थे और जो बाहर थे, सबने कष्ट झेले – सुनील देशपांडे जी - ବିଶ୍ୱ ସମ୍ବାଦ କେନ୍ଦ୍ର ଓଡିଶା

आपातकाल के समय जो जेल में थे और जो बाहर थे, सबने कष्ट झेले – सुनील देशपांडे जी

इंदौर. आपातकाल में देश के विभिन्न स्थानों पर मीसाबंदी रहे ज़ननायकों को किस प्रकार यातना दी गई और देश के लोकतन्त्र पर किस तरह कुठाराघात किया गया, इन संस्मरणों को संघ के स्वयंसेवक, लेखक व इंजीनियर रमेश जी गुप्ता ने “मैं मीसाबंदी” नामक पुस्तक में संकलित किया है.

आपातकाल के दौरान 19 माह तक जेल में रहे रमेश जी गुप्ता ने अपनी पुस्तक में आपातकाल में सरकार द्वारा किये गए अन्याय, अत्याचार और तत्कालीन तानाशाही का सजीव चित्रण किया है. रमेश गुप्ता ने पुस्तक परिचय में मीसा बंदी काल में निरपराध लोगों पर अमानुषिक अत्याचार का वर्णन किया है. यह पुस्तक उस काल की विवेचना के लिए नहीं है, बल्कि राष्ट्र की युवा पीढ़ी इस विभीषिका को समझे कि आपातकाल क्यों लागू किया गया, किस तरह मीसा बंदी नागरिकों को यातना दी गई, कैसे महिलाओ और बच्चों ने अभाव में जीवन यापन किया और कैसे गृहिणियों ने मीसा बंदी परिवारों का संरक्षण किया, इस पुस्तक में वर्णन है. युवा पीढ़ी को इस काल से परिचित कराना ही इस पुस्तक लेखन का उद्देश्य है.

पुस्तक का विमोचन पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन जी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख सुनील जी देशपांडे व मीसाबंदी श्री कृष्ण कुमार अस्थाना ने किया.

पुस्तक विमोचन के अवसर पर सुनील जी देशपांडे ने कहा कि इस पुस्तक का लिखना इसलिए भी आवश्यक है कि आपातकाल के समय सरकार की जो निरंकुश व दमनकारी प्रवृत्ति थी, वह आज की पीढ़ी के संज्ञान में आनी चाहिए ताकि उस प्रवृत्ति की पुनरावृत्ति भविष्य में कदापि ना हो.

आपातकाल के दुखदायी कालखण्ड में मीसाबंदियों ने तो अकल्पनीय कष्ट झेले ही, परंतु उनके परिवार व आश्रितों ने भी असहनीय वेदना का दृढ़तापूर्वक सामना किया. यह पुस्तक समाज जागरण का कार्य करेगी. उन्हों ने कहा कि देश को आगे बढ़ाने के लिए संपूर्ण समाज को Making India में सम्मिलित होना चाहिए. सम्मान, सत्कार करना आसान है, पर त्याग करना बहुत मुश्किल है.

सुनील जी ने कहा कि मीसा बंदी काल जैसी दुर्भाग्यपूर्ण यातनाओं के जीवन में संघर्ष करना और स्वाभिमान से जीवन जीना यह करने के लिए ज्येष्ठ लोग जिम्मेदार होते हैं, यह आचरण और अनुकरणीय संस्मरण इस पुस्तक में हैं. सभी को इसे पढ़ना चाहिए, युवा वर्ग को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए. तभी इसका लेखन सार्थक होगा.

विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि सुमित्रा जी ने कहा कि यह किताब नहीं स्वयं से संवाद है, वास्तविकता का सजीव वर्णन है. आज के लोग अतीत के त्याग और संघर्ष के बारे में नहीं जानते हैं, तत्कालीन समय के संघर्ष में तानाशाही द्वारा विभाजन के अत्याचार को दोहराया गया. पर यह भारत हम सब का भारत है, इसके उत्थान में सभी जाति जमाती का त्याग है. इसलिए तन समर्पित, मन समर्पित की सामाजिक चेतना जागृत करनी होगी, इसे आज की पीढ़ी समझे. सद्गुणों की उपासना और राष्ट्रवाद का कार्य संगठन के निर्देशन में होता रहा, यह सब आज की पीढ़ी जाने.

आयोजन के अध्यक्ष कृष्ण कुमार जी अस्थाना ने कहा कि यह किताब नहीं, बल्कि भोगा हुआ सत्य है, इस पुस्तक के हर शब्द का मैं साक्षी हूं. इस किताब की विशेषता है कि यह पुस्तक प्रेरणा दायक संस्मरण से भरी हुई है, यह किताब आपातकाल का encyclopedia है.

इस अवसर पर बड़ी संख्या में शहर के गणमान्य नागरिक, वरिष्ठ समाज सेवी, युवा व पत्रकार बंधु उपस्थित रहे. वंदे मातरम के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ.

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