लद्दाख/जम्मू. भारत सरकार सीमावर्ती क्षेत्रों में आधारभूत ढांचे को मजबूत कर रही है. इसी क्रम में संचार ढांचे को भी मजबूत किया जा रहा है. केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में सीमा क्षेत्रों पर ढांचे को सुदृढ़ किया जा रहा है. पश्चिमी लद्दाख में 15,500 फीट से भी अधिक ऊंचाई पर दुनिया के सबसे ऊँचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में सेना की सिग्नल रेजीमेंट के जवानों ने भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) की सहायता से पहला मोबाइल टावर लगाया है. इससे यहाँ संचार व्यवस्था सुदृढ़ होगी.
सियाचिन ग्लेशियर में टावर लगने से ना सिर्फ देश की सुरक्षा में तैनात सैनिक अपने परिजनों से संपर्क स्थापित कर सकेंगे. उन्हें 4जी इंटरनेट की सुविधा भी मिलेगी. संचार के बुनियादी ढांचे को अधिक मजबूत बनाने के लिए सियाचिन क्षेत्र में और भी मोबाइल टावर लगाने की योजना है. इन्हें लगाने का काम भी आने वाले कुछ वर्षों में पूरा कर लिया जाएगा.
सियाचिन के अलावा दूसरी ओर चीन से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के करीब स्थित यूरगो गांव में भी ‘एयरटेल’ (Airtel) ने इस सप्ताह अपना टावर लगाया है. टावर लगने से यह दूरदराज का क्षेत्र अब मोबाइल कनेक्टिविटी से जुड़ गया है. पहले क्षेत्र में मोबाइल टावर न होने के कारण पूर्वी लद्दाख के दूरदराज क्षेत्र के निवासी संचार सुविधा से वंचित थे. इसके अलावा सीमा सुरक्षा में तैनात सैनिकों व ITBP के जवानों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था. लेकिन अब यूरगो गांव में मोबाइल टावर स्थापित होने से क्षेत्र के अन्य गांवों में भी जल्द मोबाइल सुविधा शुरू होने की संभावना है.
इस समय लद्दाख के सीमांत क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में बड़े पैमाने पर काम किया जा रहा है. प्रदेश प्रशासन भी पूरी कोशिश कर रहा है कि मोबाइल कंपनियां दूरदरराज क्षेत्रों तक अपनी सेवा पहुंचाएं.
1984 से सियाचिन में बहादुरी से डटे सैनिक
सियाचिन ग्लेशियर काराकोरम रेंज का सबसे लंबा ग्लेशियर है. इसका लंबाई 75 Km है. सियाचिन ग्लेशियर दुनिया का सबसे ज्यादा ऊंचा बैटलफील्ड भी है. यह भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा के पास स्थित है. सियाचिन ग्लेशियर भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के पास करीब 78 KM में फैला है. इसके एक तरफ पाकिस्तान, दूसरी तरफ अक्साई चीन है. 1972 के शिमला समझौते में सियाचिन को बेजान और बंजर बताया गया था. हालांकि तब भारत-चीन के बीच इसके सीमा का निर्धारण नहीं हुआ था. 1984 में भारतीय सेना को जानकारी मिली कि पाकिस्तानी सेना इस क्षेत्र को कब्जे में लेने की कोशिश कर रही है, जिसके बाद 13 अप्रैल, 1984 को भारतीय सेना ने अपनी फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स की स्पेशल टुकड़ी को इस क्षेत्र में तैनात कर दिया और तबसे लेकर अब तक भारतीय सेना के जवान पूरी मुस्तैदी से इस सबसे अधिक उंचाई वाले क्षेत्र पर डटे हैं. यहाँ तैनात सैनिकों को दुश्मनों से ज्यादा खतरा मौसम से रहता है.