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‘सर्वजन हिताय’ भारत का मूल तत्व है - ବିଶ୍ୱ ସମ୍ବାଦ କେନ୍ଦ୍ର ଓଡିଶା

‘सर्वजन हिताय’ भारत का मूल तत्व है

जयपुर. शैक्षिक मंथन संस्थान जयपुर की ओर से रविवार को भारत की अवधारणा विषय पर पाथेय भवन में व्याख्यान आयोजित किया गया.

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक शिक्षण प्रमुख स्वांत रंजन ने कहा कि भारत विश्व में ज्ञान की दृष्टि से सदैव श्रेष्ठ रहा है. इस सांस्कृतिक राष्ट्र में कई भाषाएं और उपासना पद्धतियां तो हैं, लेकिन इसका सांस्कृतिक एकात्म भाव एक ही है. उन्होंने ‘नेशन’ और ‘राष्ट्र’ की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा कि वामपंथी विचार के लोगों ने भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक पुरातनता को हानि पहुंचाई है और इसके कर्म सिद्धांत, श्रम संस्कृति जैसे मौलिक आधार सूत्रों को कमतर आंका गया. इतिहास क्रम से भारत में जनजातीय और वनवासी जीवन से नगर सभ्यताओं का विकास हुआ और धीरे-धीरे व्यवस्थित कृषि उन्नत हुई.

उन्होंने कहा कि भारत केवल एक जमीन का टुकड़ा नहीं, अपितु एक जीवंत सांस्कृतिक इकाई है. मध्यकाल में कुछ आक्रांताओं के दबाव के कारण आई परंपरागत रूढ़ियों का दुष्प्रभाव आज भी भारत में  दिखाई देता है. समय रहते समाज को उन्हें बदलना चाहिए. उन्होंने स्पष्ट किया कि हमारा शरीर हमारा देश है, उस पर पहने जाने वाले विभिन्न रंगों के कपड़े उसके राज्य अर्थात अंचल हैं और हमारी आत्मा भारत की संस्कृति है. इस तरह भारत राष्ट्र एक सांस्कृतिक इकाई है.

व्याख्यान में मुख्य अतिथि प्रदीप कुमार शेखावत सूचना आयुक्त हरियाणा राज्य सूचना आयोग ने कहा कि सामाजिक प्रतिबद्धता के बिना सच्ची पत्रकारिता नहीं की जा सकती और जीवन में वैचारिक पक्ष से अधिक व्यावहारिक पक्ष महत्वपूर्ण है. आज हमें युवा पीढ़ी में आचरण की शुद्धता के साथ उन्हें संस्कारवान बनाने की आवश्यकता है. सामाजिक समरसता तथा समानता के भाव का विस्तार करना चाहिए. यही समृद्ध राष्ट्र की नींव हो सकती है. आज हमें संस्कार शिक्षा की महती आवश्यकता है.

व्याख्यानमाला के अध्यक्ष जगदीश प्रसाद सिंघल ने कहा कि भारत के प्राचीन काल से ही ऋषियों ने ज्ञान के विविध क्षेत्रों में गहन शोध एवं अन्वेषण किए हैं. ऋषियों की वाणी है कि भारत में मनुष्य के रूप में जन्म लेना गौरव की बात है, किंतु मध्यकाल में कुछ आक्रांताओं ने आकर भारत के आत्म तत्व को समाप्त करने की भरसक चेष्टा की और उन्होंने इस प्रकार की बौद्धिक स्थापनाएँ देना आरंभ किया कि भारत में तो तीन प्रकार के लोग रहते हैं;  कुछ निवासी हैं, कुछ अनिवासी हैं और कुछ प्रवासी हैं.

इस तरह उन्होंने भारतीय एकात्मता का क्षरण करते हुए उसको नुकसान पहुंचाने की बात की और कहा कि भारत तो अनेक राष्ट्रों का समूह है और वह कभी एक हो ही नहीं सकता. जबकि भारत की सांस्कृतिक और राष्ट्रीय एकात्मता के कारण ही आज भारत विभिन्न क्षेत्रों में नई ऊंचाइयां छू रहा है.

भारत की प्राचीनता व आध्यात्मिकता के कारण ही आज भारत विश्व में पहचाना जाने लगा है. हमारी ‘बहुजन हिताय’ की अपेक्षा ‘सर्वजन हिताय’ की दृष्टि रही है. यह समय भारत की त्यागमयी विश्वबंधुत्व की विशिष्ट संस्कृति की पुनर्स्थापना का समय है.

अतिथियों के कर कमलों से पाथेय कण के ‘सेवा स्वावलंबन’ विशेषांक का विमोचन हुआ.

शैक्षिक मंथन संस्थान के सचिव मोहन पुरोहित ने सभी का आभार प्रकट किया तथा समवेत स्वर में वंदे मातरम गीत के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ. कार्यक्रम का संचालन डॉ. शिवशरण कौशिक संपादक शैक्षिक मंथन ने किया.

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