कोलकाता. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस और संघ का चिंतन एक ही है. सरसंघचालक जी पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना के बारासात में स्वयंसेवक एकत्रीकरण में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि, “सुभाष बाबू का ध्येय, उनके चिंतन और हमारे संघ चिंतन में कोई अंतर नहीं है. अपने पथ का अनुकरण कैसे करना है, हम इसके लिए उनको एक मूर्तिमान उदाहरण मानते हैं. सबको जोड़कर, किसी के साथ कलह ना करते हुए, अपने आपको सक्षम बनाते हुए, प्रामाणिकता से, निस्वार्थ भाव से, तन-मन-धन पूर्वक पूरा होने तक किसी काम को करना है. सरसंघचालक जी ने कहा कि नेताजी ने अधूरा छोड़ देने के लिए सपने नहीं देखे थे. हालांकि उनको पता था कि यह काम किसी एक पीढ़ी का नहीं है. हमें तब तक अपना काम नहीं छोड़ना चाहिए, जब तक कि वह पूरा ना हो जाए.
“सुभाष चंद्र बोस आधुनिक भारत के शिल्पकारों में से एक हैं. स्वतंत्रता भारत के लोगों के आत्मत्याग और बलिदान से आई है. हम अपने स्वार्थ के अलावा कुछ नहीं देखते. नेताजी ने देश के लिए सब कुछ समर्पित कर दिया. देश के अलावा कुछ भी नहीं सोचा. हमें भी उस लक्ष्य के साथ आगे बढ़ना है.
उन्होंने कहा कि “नेताजी एक अच्छे करियर में थे. लेकिन देश के लिए उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया. उनके गांधी जी से मतभेद थे. वे चुनाव द्वारा कांग्रेस के अध्यक्ष बने. गांधी जी कहने पर सुभाष चंद्र बोस ने बड़ा दिल दिखाते हुए इस्तीफा दे दिया. उन्होंने दोबारा शून्य से शुरुआत की. अंग्रेजों को कमजोर करने के लिए उन्होंने दुनियाभर के कई नेताओं से बात की. नजरबंद होने के बावजूद वह देश से बाहर जर्मनी चले गये. उन्होंने जापान आकर रासबिहारी बोस के साथ मिलकर आज़ाद हिन्द सरकार बनाई, तब देश में जनजागरण हुआ. नेताजी का एक ही मकसद था देश को बचाना.