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ब्रह्मतेज और क्षात्रतेज से पल्लवित होकर भारत विश्वगुरु बने – डॉ. मोहन भागवत जी - ବିଶ୍ୱ ସମ୍ବାଦ କେନ୍ଦ୍ର ଓଡିଶା

ब्रह्मतेज और क्षात्रतेज से पल्लवित होकर भारत विश्वगुरु बने – डॉ. मोहन भागवत जी

श्रौत कर्म (अग्निहोत्र), सदाचार और धर्म की वृद्धि के लिए है – डॉ. मोहन भागवत जी

काशी (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारतवासियों की श्रद्धा पूर्वकाल में वेद में थी, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगी. वर्तमान विज्ञान में अन्तःस्फूर्ति शब्द का प्रयोग हो रहा है. परन्तु यह तथ्य हमारे पूर्वजों को पहले से ही पता था और इसी तथ्य के आधार पर वह सत्य का अन्वेषण करते थे. भारत की उन्नति भौतिक, आर्थिक, सामरिक तो होनी चाहिए, परन्तु आध्यात्मिक और दार्शनिक उन्नति भी अतिआवश्यक है. नहीं तो वह उन्नति वैशिष्ट्य पूर्ण नहीं होगी. वर्तमान समय में आक्रमणों के कारण वेदों की ज्ञान व्यवस्था ध्वस्त हुई है. अमृत महोत्सव वर्ष में भारत का अभ्युदय हो, ऐसा हम सबका प्रयास है. सरसंघचालक जी काशी में चेतसिंह घाट पर आयोजित अग्निहोत्री विद्वान सम्मान समारोह में सम्बोधित कर रहे थे. कांची कामकोटिश्वर पीठ के शंकराचार्य श्री विजयेन्द्र सरस्वती जी के चातुर्मास काशी प्रवास के क्रम में कार्यक्रम आयोजित किया गया था.

उन्होंने कहा कि आज की कठिन परिस्थिति में निष्ठापूर्वक व्रतधारण करके कुछ लोग कार्य कर रहे हैं, उनके कारण वेदों की ज्ञान धारा का रक्षण हो रहा है. ज्ञान, कर्म, भक्ति का मूर्त उदाहरण हमारे अग्निहोत्री वैदिक जन हैं. श्रौत कर्म (अग्निहोत्र), सदाचार और धर्म की वृद्धि के लिए है. वेदों का जतन और अग्निहोत्र धारण कर देवताओं के आह्वान की क्षमता अहिताग्नि विद्वान रखते हैं. ब्रह्मतेज और क्षात्रतेज से पल्लवित भारत विश्व का गुरु बने, यह शुभकामना है. अग्निहोत्री विद्वानों को नमन करते हुए मोहन भागवत जी ने कहा कि आप सभी वेदों का संरक्षण करें, समग्र हिन्दू समाज को खड़ा करना हमारा कार्य है.

जगतगुरु शंकराचार्य जी ने कहा कि मंदिरों को अग्निहोत्री विद्वानों से जोड़ना चाहिए. अग्निहोत्र का कार्य शास्त्रीय पर्यावरण और चिन्तन पर्यावरण के रक्षण हेतु किया जाता है. वर्तमान भारत के विकास के दो आयाम हैं – प्रथम डिजिटल इंडिया का विकास और दूसरा डिवाइन इंडिया का विकास. वर्तमान में धर्म समृद्धि आवश्यक है. संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा चलने वाली धर्म जागरण एवं कुटुम्ब प्रबोधन गतिविधि इसी तथ्य को आगे बढ़ा रहे हैं. जिस प्रकार माइक्रो इकॉनोमी होती है, उसी प्रकार धर्म का रक्षण करने के लिए माइक्रो चैरिटी होनी चाहिए. काश्मीर से कन्याकुमारी तक मन्दिरों का संरक्षण नीति, नियम निर्वहन से होना चाहिए. वेद अपौरुषेय हैं. इसमें अग्नि उपासना के विषय को पुनः विकसित करना चाहिए.

पंचाग्नि और उसका महत्व

शंकराचार्य जी ने पंचाग्नि और उसके महत्व की चर्चा करते हुए बताया कि विधिपूर्वक अरणी मंथन कर वैदिक रीति से उत्पन्न अग्नि पर आहुति दी जाती है. वह पांच प्रकार की होती है. यह पंचवायु रूप में चित्रित है जो पंचमहाभूत से निर्मित शरीर के लिए अतिआवश्यक है. पंचाग्नि के नाम इस प्रकार हैं – गाह्र्यपत्य (प्राणवायु), आह्वनीय (अपानवायु), दक्षिणाग्नि (ज्ञानवायु), आवसभ्य (समानवायु), सभ्य (उदानवायु). अग्निहोत्र श्रौत यज्ञ का एक प्रकार है, जिसे अग्नि पर आधान कर जीवन पर्यंत धारण करना होता है. जिसमें प्रातःकाल सूर्यनारायण और सायंकाल अग्निदेव के लिए हवन होता है. सायंकाल और प्रातःकाल दोनों का समय मिलाकर एक कृत्य होता है.

जो सपत्नीक अग्निहोत्र धारण करता है वो अहिताग्नि या अग्निहोत्री होता है. वर्तमान में पूरे भारत में 140 अग्निहोत्री विद्वान हैं, जिनमें से लगभग सौ विद्वानों ने अग्निहोत्र सभा में भाग लिया.

आद्य शंकराचार्य द्वारा जिस योग लिंग की स्थापना की गयी थी, तब से आज तक उसी प्रकार से योगलिंग और श्रीविद्या की उपासना वर्तमान शंकराचार्य द्वारा भी हो रही है. उसी पूजन परम्परा के साक्षी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक भी हुए.

कार्यक्रम के प्रारम्भ में जगतगुरु शंकराचार्य जी तथा सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने लगभग 45 मिनट तक विभिन्न याग (हवन) में भाग लिया तथा अग्निहोत्री विद्वानों से आशीर्वाद तथा प्रसाद ग्रहण किया. तत्पश्चात सभास्थल पर आयोजित विभिन्न यज्ञ के उपकरणों की प्रदर्शनी तथा एक दर्जन से अधिक यज्ञ विधियों के सन्दर्भ में शंकराचार्य जी द्वारा जानकारी दी गयी. मंच पर विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखित पुस्तकों का विमोचन भी किया गया.

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