लखनऊ, 23 नवम्बर 2025।
दिव्य गीता कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि, गीता को केवल पढ़ना नहीं, बल्कि उसे जीवन में उतारकर जीना है। आज यह कार्यक्रम सम्पन्न अवश्य हुआ है, परन्तु हमारा कर्तव्य केवल कार्यक्रम तक सीमित नहीं हो जाता। हम सब यहाँ इसलिए उपस्थित हैं कि गीता के संदेश को अपने जीवन में चरितार्थ करना है। गीता के कुल 700 श्लोक हैं; यदि हम प्रतिदिन दो श्लोकों का अध्ययन कर उन पर मनन करें और जो सार प्राप्त हो उसे व्यवहार में लाएँ, जीवन की प्रत्येक कमी का परिमार्जन करें, तो वर्षभर में हमारा जीवन गीतामय बनने की दिशा में अत्यन्त आगे बढ़ सकता है।
सरसंघचालक जी ने कहा कि जैसे महाभारत के रणक्षेत्र में अर्जुन मोहग्रस्त हो गए थे, वैसे ही आज सम्पूर्ण विश्व जीवन-संघर्ष में भयग्रस्त और मोहबद्ध होकर दिशाहीनता का अनुभव कर रहा है। अत्यधिक परिश्रम और भाग-दौड़ के बावजूद शांति, रीति, संतोष और विश्राम की अनुभूति नहीं हो रही है। हजार वर्ष पूर्व जिन संघर्षों, क्रोध और सामाजिक विकृतियों का उल्लेख मिलता है, वे आज भी विभिन्न रूपों में विद्यमान हैं। भौतिक ऐश्वर्य बढ़ा है, परन्तु जीवन में आन्तरिक शांति और संतुलन का अभाव है। आज असंख्य लोग यह अनुभव कर रहे हैं कि जिस मार्ग पर वे अब तक चले, वह मार्ग उचित नहीं था और अब उन्हें सही मार्ग की आवश्यकता है। यह मार्ग भारत की सनातन जीवन-परम्परा और श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान में निहित है – जिसने सदियों तक विश्व को सुख, शांति और संतुलन प्रदान किया है।
उन्होंने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता अनेक उपनिषदों एवं दर्शनशास्त्रों का सार है। अर्जुन जैसे धीर, वीर और कर्तव्यनिष्ठ पुरुष भी जब मोहग्रस्त हो गए, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें मूल सत्य, धर्म और कर्तव्य का उपदेश देकर पुनः स्थितप्रज्ञ बनाया। गीता का मर्म सरल भाषा में समझना आवश्यक है, ताकि वह जीवन में आत्मसात हो सके। गीता हर बार मनन करने पर नई प्रेरणा देती है तथा प्रत्येक परिस्थिति के अनुरूप मार्गदर्शन करती है।
भगवान कृष्ण का प्रथम उपदेश यह है कि समस्या से भागो मत – उसका सामना करो। यह अहंकार मत पालो कि “मैं करता हूँ” – क्योंकि वास्तविक कर्ता परमात्मा ही है। मृत्यु अटल है, शरीर परिवर्तनशील है। गीता केवल अध्ययन का ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की साधना है। यदि हम गीता को आचरण में उतार लें तो भय, मोह और दुर्बलताओं से ऊपर उठकर जीवन को समर्पित, सार्थक और सफल बना सकते हैं। परोपकार-भाव से किया गया छोटा-से-छोटा कार्य भी श्रेष्ठ माना जाता है। विश्व में शांति की स्थापना गीता के ही माध्यम से सम्भव है। दुविधाओं से मुक्त होकर राष्ट्र-सेवा में आगे बढ़ना हमारा परम कर्तव्य है और यही मार्ग भारत को पुनः विश्वगुरु बना सकता है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारत का हर सनातन धर्मावलम्बी व्यक्ति गीता के 18 अध्याय और 700 श्लोक को आत्मसात करके बड़े ही श्रद्धा भाव से पढ़ता है। हमने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना है, बल्कि धर्म हमारे यहाँ जीवन जीने की कला है। हम हर कर्तव्य को धर्म के भाव से करते हैं। हमने अपनी श्रेष्ठता का डंका कभी नहीं पीटा। अन्याय नहीं होना चाहिए, जीओ और जीने दो की सोच होनी चाहिए। युद्ध कर्तव्यों के लिए लड़ा जाता है। जहाँ धर्म होगा, वहीं विजय होगी। अपने धर्म पर चलकर कार्य करना चाहिए। अधर्म के साथ कोई भी कार्य करने से नाश ही होता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी महोत्सव के कार्यक्रम से जुड़ रहा है, दुनिया के लिए कौतूहल औऱ आश्चर्य का विषय है। दुनियाभर से विभिन्न देशों के एंबेसडर आते हैं और वे हम लोगों से पूछते हैं क्या आप लोगों का संघ से जुड़ाव है। हम लोग कहते हैं हाँ, हम लोगों ने स्वयंसेवक के रूप में कार्य़ किया है। संगठन, समाज के प्रति अपने आपको समर्पित करते हुए हर एक क्षेत्र में कार्य करता है। कोई भी पीड़ित आएगा, उसकी सेवा अपना कर्तव्य मानकर एक-एक स्वयंसेवक करता है। बिना यह परवाह किए कि किस जाति, मत, मजहब, क्षेत्र, भाषा का है। कर्तव्य मानकर सेवा को किसी सौदे के साथ नहीं जोड़ते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यही शिक्षा है कि राष्ट्र प्रथम भाव के साथ राष्ट्र के अन्दर हर उस पीड़ित की मदद करना है जो भारत को परम वैभव तक ले जाने में सहायक हो सकता है। उसके साथ खड़ा हो जाना है, यही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा है। जिसने सेवा के साथ पिछले सौ वर्षों में कोई सौदेबाजी नहीं की, लेकिन कुछ लोगों ने दुनिया और भारत में भी सौदे का माध्यम बनाया है।
गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानन्द जी महाराज ने कहा कि दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव से पूरे देश में सन्देश जाएगा। यह आयोजन प्रदर्शन नहीं एक प्रेरणा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी अपने शताब्दी वर्ष में पंच-परिवर्तन का सन्देश समाज में दे रहा है भारतीय राष्ट्रीयता का प्रभाव बढ़ रहा है।
रामानन्द आचार्य श्रीधर महाराज ने कहा कि, पर्यावरण का समाधान गीता में है। वैदिक मंत्रों से यज्ञ, जल संरक्षण और प्रकृति की रक्षा करो।
स्वामी परमात्मानन्द जी महाराज ने कहा कि, गीता का पहला शब्द धर्म और अन्तिम शब्द भी धर्म है। अत: गीता हमें धर्म का सन्देश देती है।
