नई दिल्ली. समलैंगिक विवाह पर उच्चतम न्यायालय ने आज अपना निर्णय सुना दिया. उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया. न्यायालय का मानना है कि संसद को समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मामले में निर्णय करना चाहिए. पांच जजों की पीठ में मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल थे. उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने 3-2 से निर्णय सुनाया.
भारतीय संविधान में विवाह का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन रिलेशनशिप को मान्यता दी गई है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल ने अपने फैसले में कहा कि समलैंगिक जोड़े को बच्चे गोद लेने का अधिकार है. वहीं, जस्टिस एस. रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा ने इस पर आपत्ति जताई.
समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली 21 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि अदालत कानून नहीं बना सकती, बल्कि केवल इसकी व्याख्या कर सकती है और विशेष विवाह अधिनियम को बदलना संसद का काम है.
समलैंगिक विवाह पर उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के निर्णय के पश्चात प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद ने न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने X (ट्विटर) पर लिखा -उच्चतम न्यायालय का समलैंगिक विवाह संबंधी निर्णय स्वागत योग्य है. हमारी लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था इस से जुड़े सभी मुद्दों पर गंभीर रूप से चर्चा करते हुए उचित निर्णय ले सकती है.
वहीं, विहिप ने भी समलैंगिक विवाह तथा उनके द्वारा दत्तक लिए जाने को कानूनी मान्यता नहीं दिए जाने के उच्चतम न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया है. विहिप के केन्द्रीय कार्याध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता आलोक कुमार ने कहा कि हमें संतोष है कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने हिन्दू, मुस्लिम व ईसाई मतावलंबियों सहित सभी संबंधित पक्षों को सुनने के बाद यह निर्णय दिया है कि दो समलैंगिकों के बीच संबंध विवाह के रूप में पंजीयन योग्य नहीं है. यह उनका मौलिक अधिकार भी नहीं है. समलैंगिकों को किसी बच्चे को दत्तक लेने का अधिकार भी ना दिया जाना भी एक अच्छा कदम है.