जींद, हरियाणा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हमें समाज को संगठित करने के लिए अधिक तेजी से कार्य करना होगा. जब सम्पूर्ण राष्ट्र एकमुष्ठ शक्ति के साथ खड़ा होगा तो दुनिया का सारा अमंगल हरण करके यह देश फिर से विश्व गुरु बनकर खड़ा होगा. सरसंघचालक रविवार को अपने प्रवास के तीसरे दिन भिवानी रोड स्थित गोपाल विद्या मंदिर में जींद नगर की शाखाओं के स्वयंसेवकों को सम्बोधित कर रहे थे. इस अवसर पर उनके साथ क्षेत्र संघचालक सीताराम व्यास, प्रांत संघचालक पवन जिंदल व विक्रम गिरी जी महाराज भी उपस्थित रहे.
सरसंघचालक जी ने कहा कि जो विश्व के सामने संकट खड़े हैं. भारत के विश्वगुरु बनने से वह सब शांति, उन्नति को प्राप्त करेंगे. सारी समस्याओं को ठीक करते हुए सब राष्ट्र अपनी-अपनी विशिष्टता के आधार पर अपना जीवन जीते हुए मानवता के जीवन में, सृष्टि के जीवन में अपना योगदान करते रहें, ऐसा एक आदर्श विश्व खड़ा करने की ताकत हिन्दुओं की सगंठित अवस्था में है. उसी के चलते मंदिर बन रहा है. मंदिर बनने का आनंद है और आनंद करना चाहिए. अभी और बहुत काम करना है. लेकिन साथ में यह भी ध्यान रखेंगे कि जिस तपस्या के आधार पर यह काम हो रहा है, वह तपस्या हमें आगे भी जारी रखनी है. जिसके चलते सम्पूर्ण गंतव्य की प्राप्ति होगी. उन्होंने कहा कि समाज में तीन शब्द चलते हैं क्रांति, उत्क्रांति, संक्रांति तीनों का अर्थ परिवर्तन है, परंतु परिवर्तन किस तरीके से आया उसमें अंतर आता है. संक्रांति हमारे यहां आदि काल से प्रचलित है. बड़े-बड़े कार्य स्व के आधार पर, सत्य के आधार पर होते हैं.
डॉक्टर साहब के सत्व, निश्चय को देखकर इस तपस्या को आगे जारी रखने के लिए संघ की पद्धति से हजारों स्वयंसेवक खड़े हुए. उनका जीवन शुद्ध, निष्कलंक, सत्चरित्र था, विरोधी भी उनका सम्मान करते थे. अविचल दृढ़ता के साथ जो ध्येय निश्चित किया, पूरा विचार करके उसकी सिद्धी के लिए डॉक्टर साहब अकेले चल पड़े और आगे चलकर बाकी सारी बातें धीरे-धीरे जुड़ गई. ये जो दीर्घ तपस्या चली है, उसके कारण देश के जीवन में जो परिवर्तन आने ही वाला है, उसके प्रारंभ का संकेत श्रीराम मंदिर है. जैसे संक्रांति के बाद अच्छा परिवर्तन आता है. ठंड कम होकर गर्मी बढ़ती है और लोगों की कर्मशीलता बढ़ती है, ठीक उसी प्रकार देश के जीवन में भी अच्छा परिवर्तन आने वाला है. हमें ऐसे जीना है कि हमको देख कर दुनिया जीना सीखे.
हिन्दू समाज के मन में था, इसलिए गुलामी का प्रतीक ढहाया गया. इसके अलावा अयोध्या में किसी भी मस्जिद को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हुआ. कारसेवकों ने कहीं दंगा नहीं किया. हिन्दू का विचार विरोध का नहीं, प्रेम का रहता है. इसे संक्रांति कहते हैं.
उन्होंने जींद नगर के स्वयंसेवकों से शाखा के माध्यम से पंच परिवर्तन के विषय स्व का बोध अर्थात स्वदेशी, नागरिक कर्तव्य, पर्यावरण, सामाजिक समरसता, कुटुम्ब प्रबोधन के कार्यों को आम जन तक पहुंचाने का आह्वान किया. इन पंच परिवर्तन के कार्यों से ही समाज में बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है. इस समय हरियाणा में 800 स्थानों पर 1500 शाखाएं चल रही हैं.